Thursday, August 11, 2011

shifa k liye bahot qeemti Tibbe masoomeen (imams(a) n rasool(s)) hindi

ग़ुस्ल और सेहत

  • नहाना इन्सानी बदन के लिये इन्तेहायी मुफीद है। ग़ुस्ल इन्सानी जिस्म को मोतदिल करता है, मैल कुचैल को जिस्म से दूर करता है आसाब और रगों को नरम करता है और जिस्मानी आ़ा को ताक़त अता करता है। गन्दगी को ख़त्म करता है औ

Monday, August 8, 2011

Tibbe masoomeen (imams (a) and rasool (s)) maraz aur ilaj hindi

सफेद दाग़ (बरस) का इलाज

  • इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 ने फ़रमाया बनी इस्राईल में कुछ लोग सफ़ेद दाग़ में मुब्तिला हुए, जनाबे मूसा को वही हुई कि उन लोगों को दस्तूर दो कि गाय के गोश्त को चुक़न्दर के साथ पका कर खायें।
  • किसी ने इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 से सफ़ेद दाग़ की शिकायत की। आपने फ़रमाया नहाने से पहले मेहदी को नूरा में मिला कर बदन पर मलो।
  • एक शख़्स ने इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 से बीमारी बरस की शिकायत की, आपने फ़रमाया तुरबते इमामे हुसैन अ0 की ख़ाक बारिश के पानी में मिलाकर इस्तेफ़ादा करो।
  • सहाबी इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 के बदन पर सफ़ेद दाग़ पैदा हो गए। आपने फ़रमाया सूर-ए-या-सीन को पाक बरतन पर शहद से लिख कर धो कर पियो।
  • जो खाने के पहले लुक़्मे पर थोड़ा सा नमक छिड़क कर खाये, चेहरे के धब्बे ख़त्म हो जाएंगे।
  • सेहते चश्म
  • अगर आँख में तकलीफ़ हो तो जब तक ठीक न हो जाये बायीं करवट सो। (रसूले ख़ुदा स0)
  • तीन चीज़ें आँख की रोशनी में इज़ाफ़ा करती हैं। सब्ज़े पर, बहते पानी पर और नेक चेहरे पर निगाह करना। ( इमाम मूसा काज़िम अ0)
  • मिसवाक करने से आँख की रौशनी में इज़ाफ़ा होता है। (हज़रत अली अ0)
  • खाने के बाद हाथ धो कर भीगे हाथ आँख पर फेरे दर्द नहीं करेगी। (इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0)
  • जब भी तुम में से किसी की आँख दर्द करे तो चाहिये कि उस पर हाथ रख कर आयतल कुर्सी की तिलावत करे इस यक़ीन के साथ कि इस आयत की तिलावत से दर्दे चश्म ठीक हो जायेगा। (इमाम अली अ0)
  • जो सूर-ए-दहर की तीसरी आयत हर रोज़ पढ़े आँख की तकलीफ़ से महफ़ूज़ रहेगा। (इमाम अली अ0)
     
पेशाब की ज़्यादतीः

  • इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 से एक शख़्स ने पेशाब की ज़्यादती की शिकायत की तो आप अ0 ने फ़रमाया ः काले तिल खा लिया करो।
  • दस्तूराते उमूमी आइम्मा-ए-ताहिरीन अ0
  • बीमारी में जहाँ तक चल सको चलो।  (इमाम अली अ0)
  • खड़े होकर पानी पीना दिन में ग़िज़ा को हज़म करता है और शब में बलग़म पैदा करता है।  ( इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0)
  • हज़रत अली अ0 फ़रमाते हैं कि जनाबे हसने मुज्तबा अ0 सख़्त बीमार हुए। जनाबे फ़ातेमा ज़हरा स0 बाबा की खि़दमत में आयीं और ख़्वाहिश की कि फ़रज़न्द की शिफ़ा के लिये दुआ फ़रमायें उस वक़्त जिबराईल अ0 नाज़िल हुए और फ़रमाया ‘‘या रसूलल्लाह स0 परवरदिगार ने आप अ0 पर कोई सूरा नाज़िल नहीं किया मगर यह कि उसमें हरफ़े ‘फ़े’ न हो और हर ‘फ़े’ आफ़त से है ब-जुज़ सूर-ए-हम्द के कि उसमें ‘फ़े’ नहीं है। पस एक बर्तन में पानी लेकर चालीस बार सूर-ए-हम्द पढ़ कर फूकिये और उस पानी को इमाम हसन अ0 पर डालें इन्शाअल्लाह ख़ुदा शिफ़ा अता फ़रमाएगा।’’
  • अपने बच्चों को अनार खिलाओ कि जल्द जवान करता है। (इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0)
  • रसूले ख़ुदा को अनार से ज़्यादा रूए ज़मीन का कोई फल पसन्द नहीं था। (इमाम मो0 बाक़िर अ0)
  • गाय का ताज़ा दूध पीना संगे कुलिया में फ़ायदा करता है। (इमाम मो0 बाक़िर अ0)
  • ख़रबूज़ा मसाने को साफ़ करता है और संग-मसाना को पानी करता है। (इमाम सादिक़ अ0)
  • चुक़न्दर में हर दर्द की दवा है आसाब को क़वी करता है ख़ून की गर्मी को पुरसुकून करता है और हड्डियों को मज़बूत करता है। (इमाम सादिक़ अ0)
  • जिस ग़िज़ा को तुम पसन्द नहीं करते उसको न खाना वरना उससे हिमाक़त पैदा होगी। (इमाम सादिक़ अ0)
  • खजूर खाओ कि उस में बीमारियों का इलाज है।
  • दूध से गोश्त में रूइदगी और हड्डियों में कुव्वत पैदा होती है। (इमाम सादिक़ अ0)
  • अन्जीर से हड्डियों में इस्तेक़ामत और बालों में नमू पैदा होती है और बहुत से अमराज़ बग़ैर इलाज के ही ख़त्म हो जाते हैं। (इमाम सादिक़ अ0)
  • जो उम्र ज़्यादा चाहता है वह सुबह जल्दी नाश्ता खाये। (इमाम अली अ0)
     
खाना खाने के आदाब

  • तन्हा खाने वाले के साथ शैतान शरीक होता है। (रसूले ख़ुदा स0)
  • जब खाने के लिये चार चीज़ें जमा हो जायें तो उसकी तकमील हो जाती है। 1. हलाल से हो 2. उसमें ज़्यादा हाथ शामिल हों 3. उसमें अव्वल में अल्लाह का नाम लिया जाये और 4. उसके आखि़र में हम्दे ख़ुदा की जाये। (रसूले ख़ुदा स0)
  • सब मिल कर खाओ क्योंकि बरकत जमाअत में है। (रसूले ख़ुदा स0)
  • जिस दस्तरख़्वान पर शराब पी जाये उस पर न बैठो। (रसूले ख़ुदा स0)
  • चार चीज़ें बरबाद होती हैंः शोराज़ार ज़मीन में बीज, चांदनी में चिराग़, पेट भरे में खाना और न एहल के साथ नेकी। (इमाम सादिक़ अ0)
  • जो शख़्स ग़िज़ा कम खाये जिस्म उसका सही और क़ल्ब उसका नूरानी होगा। (रसूले ख़ुदा स0)
  • जो शख़्स क़ब्ल व बाद ग़िज़ा हाथ धोए ताहयात तन्गदस्त न होए और बीमारी से महफ़ूज़ रहे। (इमाम सादिक़ अ0)
  • क़ब्ल तआम खाने के दोनों हाथ धोए अगर चे एक हाथ से खाना खाये और हाथ धोने के बाद कपड़े से ख़ुश्क न करे कि जब तक हाथ में तरी रहे तआम में बरकत रहती है। (इमाम सादिक़ अ0)
     
हज़रत अली अ0 फ़रमाते हैंः
  • कोई ग़िज़ा न खाओ मगर यह कि अव्वल उस तआम में से सदक़ा दो।
  • ज़्यादा ग़िज़ा न खाओ कि क़ल्ब को सख़्त करता है, आज़ा व जवारेह को सुस्त करता है नेक बातें सुनने से दिल को रोकता है और जिस्म बीमार रहता है।
  • ज़िन्दा रहने के लिये खाओ, खाने के लिये ज़िन्दा न रहो।
  • जो ग़िज़ा (लुक़्मे) को ख़ूब चबाकर खाता है फ़रिश्ते उसके हक़ में दुआ करते हैं, रोज़ी में इज़ाफ़ा होता है और नेकियों का सवाब दो गुना कर दिया जाता है।
  • जो शख़्स वक़्ते तआम खाने के बिस्मिल्लाह कहे तो मैं ज़ामिन हूँ कि वह खाना उसको नुक़्सान न करेगा।
  • वक़्त खाना खाने के शुक्रे खुदा और याद उसकी और हम्द उसकी करो।
  • जिस शख्स को यह पसन्द है कि उसके घर में खैर व बरकत ज़्यादा हो तो उसे चाहिये कि खाना जब हाजिर हो तो वज़ू करे।
  • जो कोई नाम ख़ुदा का अव्वल तआम में और शुक्र ख़ुदा का आखि़र तआम पर करे हरगिज़ उस खाने का हिसाब न होगा।
  • जो ज़र्रा दस्तरख़्वान पर गिरे उनका खाना फक्ऱ को दूर करता है और दिल को इल्म व हिल्म और नूरे ईमान से मुनव्वर करता है।
  • जनाबे अमीरूल मोमेनीन अ0 ने फ़रमाया के ऐ फ़रज़न्द! मैं तुमको चार बातें ऐसी बता दूँ जिसके बाद कभी दवा की ज़रूरत न पड़े- 1.जब तक भूख न हो न खाओ।   2. जब भूख बाक़ी हो तो खाना छोड़ दो।  3. खूब चबा कर खाओ। 4. सोने से पहले पेशाब करो।
  • रौग़ने ज़ैतून ज़्यादतीए हिकमत का सबब है। (इ0 ज़माना अ0)
  • भरे पेट कुछ खाना बाएस कोढ़ और जुज़ाम का होता है।
     

Saturday, July 30, 2011

Tibbe imam sadiq, imam ali, imam reza/riza, imam kazim a.s. hindi

तिब्बे इमामे सादिक़ अलैहिस्सलाम

  • अपनी सेहत की हिफ़ाज़त के लिये जो कुछ भी ख़र्च किया जाये वह इसराफ़ में नहीं आता क्योंकि इसराफ़ उस सूरत में होता कि जब पैसा इन्सानी नफ़्स को तकलीफ़ देने के लिये ख़र्च किया जाये।
  • क़ल्बे मोमिन के लिये ज़्यादा ग़िज़ा से कोई चीज़ ज़्यादा ज़रर पहुंचाने वाली नहीं है। इस सबब से कि ज़्यादा ग़िज़ा से दो नुक़सान होते हैं एक क़सावते क़ल्ब दूसरे बेजा शहवत।
  • मिसवाक में बारह ख़सलतें हैं, मुँह को पाक करती है, आँखों को जिला देती है, ख़ुदा की ख़ुशनूदी का सबब है, दाँतों को सफ़ेद करती है, दाँतों के मैल को दूर करती है, दाढ़ों को मज़बूत करती है, भख बढ़ाती है, बलग़म दूर करती है, नेकियों को दो बराबर करती है, मलाएका ख़ुश होते हैं और मुसतहिब है।
  • आप अ0 ने फ़रमाया कि जनाबे नूह ने ख़ुदा से ग़मो अन्दोह की शिकायत की, वही आईः सियाह अंगूर खाओ कि ग़म को दूर करता है।

बीमारियों के सिलसिले में जनाबे जाबिर ने इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम से सवाल कियाः
  • जनाबे जाबिरः बीमारी के बारे में आपका नज़रिया क्या है? आया बीमारी को ख़ुदा इन्सान पर नाज़िल करता है या वह इत्तेफ़ाक़िया तौर पर बीमार होता है?
  • इमामे सादिक़ अलैहिस्सलाम ः बीमारी की तीन क़िस्में हैंः-
 ख़ुदा की मशीयत से पैदा होती हैं जिनमें से एक बुढ़ापा है कि किसी शख़्स को उससे छुटकारा नहीं, उसमें हर शख़्स मुब्तिला होता है।
 जिन में जिहालत या हिर्स व हवस की वजह से इन्सान खुद अपने को मुब्तिला कर लेता है। अगर इन्सान खाने पीने में इसराफ़ न करे और चन्द लुक़्मे कम खाये और चन्द घूट कम पिये तो बीमारी से दो चार न होगा।
 जो बदन के दुश्मनों से पैदा होती हैं, वह इन्सान के जिस्म पर हमला करते है और जिस्म अपने अन्दर मौजूद वसाएल   ( )के ज़रिये उनका मुक़ाबला करता है।
  • जनाबे जाबिरः बदन के दुश्मन कौन हैं?
  • इमामे सादिक़ अलैहिस्सलामः बदन के दुश्मन कुछ ऐसे बारीक और छोटे-छोटे मौजूदात (जरासीम) होते हैं जो आँख से नज़र नहीं आते हैं और वही बदन पर हमलावर होते हैं और बदन के अन्दर भी बारीक मख़लूक़ात होते हैं जो नज़र नहीं आते वह दुश्मनों से जिस्म की हिफ़ाज़त करते हैं।
तिब्बे मासूमीन अलैहिस्सलाम

  • बुख़ारः- सेब खाओ कि बदन की हरारत को आराम पहुुँचाता है। अन्दरूनी गर्मी को ठन्डा करता है और बुखार को खत्म करता है। (इमाम सादिक़ अ0)
  • अगर लोग सेब के फ़ायदे को जानते तो अपने मरीज़ों का इलाज हमेशा सेब से करते। (इमाम सादिक़ अ0)
  • मोहम्मद बिन मुस्लिम ने नक़्ल किया है कि जब भी इमाम मोहम्मद बाक़िर अ0 को बुख़ार होता था तो इमाम सादिक़ अ0 दो कपड़ों को भिगोते थे एक को बदन पर रखते थे और ज बवह खुश्क हो जाता था तो बदल देते थे। (इमाम सादिक़ अ0)
  • बुख़ार ख़त्म करने के लिये ठन्डा पानी और दुआ के मानिन्द कोई चीज़ नहीं है। (इमाम सादिक़ अ0)
  • बारिश के पानी को पियो कि बदन को पाकीज़ा और दर्दों का इलाज करता है, जैसा कि परवरदिगार सूर-ए-इन्फाल आयत 11 में फ़रमाता है ‘‘और तुम पर आसमान से पानी बरसा रहा था ताकि उससे तुम्हें पाक व पाकीज़ा कर दे और तुम से शैतान की गन्दगी दफ़ा करे और तुम्हारे दिल मज़बूत कर दे’’। (इमाम मूसा काज़िम अ0)
  • प्याज़ खाओ कि बुख़ार को ख़त्म करती है। (इमाम सादिक़ अ0)
  • एक सहाबी को अर्से से बुख़ार था इमाम सादिक़ अ0 ने फ़रमाया मुँह को कुर्ते में दाखि़ल करके अज़ान और इक़ामत कहो फ़िर सात मरतबा सूर-ए-हम्द पढ़ो, सहाबी कहता है कि मैंने ऐसा किया तो शिफा हासिल हुई।
  • गर्मियों में साहिबे बुख़ार पर ठन्डा पानी डालो, बुख़ार को सुकून अता करता है। (इमाम सादिक़ अ0)
  • हमाद बिन उसमान ने इमाम सादिक़ अ0 की खि़दमत में बुख़ार की शिकायत की, आपने फ़रमाया ‘‘एक बरतन में आयतलकुर्सी लिखकर उसमें कुछ पानी डालकर पियो।’’
  • शहद को कलौंजी के साथ मिला कर तीन दफ़ा उंगली से चाट लो बुखार में आराम मिलेगा। (इमाम मूसा काज़िम अ0)
  • बुखार के मर्ज़ में गुले बनफ़शा को ठण्डे पानी में मिलाकर उस शरबत को पियें आराम मिलेगा। (इमाम अली अ0)
  • हमारा ज़िक्र तेज़ बुख़ार, शक व वसवसों में शिफ़ा देता है। (इमाम अली अ0)

  • किरमे मेदा (पेट के कीड़े) ः अंगूर का सिरका पियो कि पेट के कीड़ों को मारता है। (इमाम अली अ0)
  • सोते वक़्त सात दाने ख़ुरमा खाओ कि पेट के कीड़े मर जाते हैं। (इमाम सादिक़ अ0)
  • दर्दे पहलूः उबैद बिन सालेह कहता है कि इमाम सादिक़ अ0 से दर्दे पहलू की शिकायत की। आप अ0 ने फ़रमाया दस्तरख़्वान पर बची हुई और गिरी हुई ग़िज़ा को खाओ, कहता है ऐसा किया और पहलू का दर्द ठीक हो गया।
  • दर्दे शिकमः इमाम सादिक़ अ0 ने फ़रमाया एक शख़्स जनाबे अमीरूल मोमेनीन की खि़दमत में आया और दर्दे शिकम की शिकायत की। इमाम अ0 ने पूछा ज़ौजा है? उसने कहा हाँ, आप अ0 ने फ़रमाया ज़ौजा से कुछ रूपिया ब-उनवाने हदिया हासिल कर, उससे शहद ख़रीद और उसमें बारिश का पानी मिलाकर पियो कि परवरदिगार फ़रमाता हैः
    • 1. और हमने आसमान से नाज़िल किया मुबारक पानी (सूर-ए-काफ़ आयत 10)
    • 2. उन मक्खियों के पेट से पीने की एक चीज़ निकलती है (शहद) जिसके मुख़तलिफ़ रंग होते हैं लोगों (की बीमारी) के लिये शिफ़ा है।
    • (सूर-ए-नहल आयत 69)
    • 3. फ़िर अगर वह (ज़ौजा) अपनी मर्ज़ी से तुम्हें कुछ (दे) तो खाओ बेहतर और मुफ़ीद है सूर-ए-निसा, आयत 4।
  • चावल को धो कर साये में सुखाओ फिर भून कर अच्छी तरह कूट लो और रोज़ाना सुबह को एक मुट्ठी खा लिया करो, दर्दे शिकम में मुफ़ीद है। (इमाम सादिक़ अ0)
  • सेब खाओ मेदे को पाक करता है। (इमाम अली अ0)
  • अमरूद मेदे को साफ़, क़ल्ब में जिला और दर्द में सुकून पैदा करता है। (इमाम सादिक़ अ0)
  • अमरूद खाना दिल को जिला देता है और अन्दरूनी दर्दों को ख़त्म करता है। (इमाम अली अ0)
दफ़ा-ए-बलग़म, रूतूबत और ज़ियादती अक्ल

  • मिसवाक करना, क़ुरआन पढ़ना बलग़म को निकालता है। (इमाम सादिक़ अ0)
  • क़ुरआन पढ़ना, मिसवाक करना और कुन्दुर खाना बलग़म में फ़ायदा करता है। (अमीरूल मोमेनीन अ0)
  • मुनक़्क़ा सफ़रा को दुरूस्त करता है, बलग़म को दूर करता है, पुटठों को मज़बूत करता है और नफ़्स को पाकीज़ा करता है और रंज व ग़म को दूर करता है।
  • सिरका ज़ेहन को तेज़ करता है और अक़्ल को ज़्यादा करता है। (हज़रत अली अ0)
  • सिरका क़ल्ब को ज़िन्दा करता है। (इमाम सादिक़ अ0)
  • प्याज़ दहन (मुँह) की बदबू दूर करती है, बलग़म कम करके सुस्ती व थकन को मिटाती है, मुबाशरत की कुव्वत में इज़ाफ़ा करती है, नस्ल को बढ़ाती है, बुख़ार को ख़त्म करती है और बदन ख़ुशरंग हो जाता है। (इमाम सादिक़ अ0)
  • मूली में तीन ख़ासियतें हैंः पत्ता ज़हरीली हवा को बदन से निकालता है, रेशा बलग़म को दूर करता है और तुख़्म हाज़िम है। (इमाम सादिक़ अ0)
  • क़ुरआन पढ़ने से, शहद खाने से, और दूध पीने से हाफ़िज़ा बढ़ता है। (इमाम रेज़ा अ0)
  • कंघा करना दाफ़े बलग़म है। (इमाम मो0 बाक़िर अ0)
  • मूली खाने से गैस ख़ारिज होती है, पेशाब खुल कर होता है और बलग़म साफ़ होता है। (इमाम सादिक़ अ0)

Friday, July 29, 2011

Tibbe Imam Raza (Reza) (Riza) a.s. hindi (Tibbe masoomeen) Sehat k liye haider alam

तिब्बे इमामे रिज़ा अलैहिस्सलाम

इमामे रिज़ा अलैहिस्सलाम ने तूस में क़याम (सन 201 हि0 से सन 203 हि0) के दौरान मामून रशीद की फ़रमाइश पर इंसानी जिस्म और उसमें होने वाले अमराज़ के सिलसिले में तफ़सील से एक रिसाला तहरीर फ़रमाया जिसमें आप अ0 ने खाना खाने के आदाब, पूरे साल के हर मााह की आब व हवा के असरात और उस माह में किन चीज़ों का इस्तेमाल मुफ़ीद है, जिस्म को सेहतमन्द रहने के लिये किन बातों रियायत ज़रूरी है और सफ़र में क्या करना चाहिये तहरीर फ़रमाया जिसमें से कुछ ज़रूरी बातें यह हैं।

दस्तूरे इमामे रिज़ा अलैहिस्सलाम उन ग़िज़ाओं के बारे में जिनको एक साथ नहीं खाना चाहिये
  1. अण्डा और मछली कि अगर एक साथ मेदे में जमा हों तो मुम्किन है कि बीमारी नुक़रस, कौलन्ज, बवासीर पैदा करें और दांतों में दर्द हो।
  2. दूध और दही कि बीमारी नुक़रस और बरस पैदा करते हैं।
  3. मुसल्सल प्याज़ खाना कि चेहरे पर धब्बों का सबब है।
  4. ज़्यादा कलेजी, दिल, जिगर खाना कि गुर्दे की बीमारी का सबब होता है।
  5. मछली खाने के बाद ठण्डे पानी से (जिस्म) धोना कि फ़ालिज या सकता का सबब हो सकता है।
  6. ज़्यादा अण्डा खाने से साँस लेने में तकलीफ़ और मेदा में गैस का सबब होता है।
  7. आधा पका गोश्त खाना कि पेट में कीड़े का सबब होता है।
  8. गरम और मीठी ग़िज़ा खाने के बाद पानी पीना दाँत ख़राब होने का सबब होता है।
  9. ज़्यादा शिकार का गोश्त और गाय का गोश्त खाने से अक़्ल ख़राब और हाफ़िज़ा कमज़ोर होता है।
दस्तूराते उमूमी इमामे रिज़ा अलैहिस्सलाम बराये सेहत
  • इमामे रिज़ा अलैहिस्सलाम ने बलग़म के इलाज के लिये फ़रमाया 10 ग्राम हलीला ज़र्द, 20 ग्राम ख़रदिल और 10 ग्राम आक़िर करहा को पीस कर मन्जन करो, इन्शाअल्लाह बलग़म को निकालता है मुँह को ख़ुशबूदार और दाँतों को मज़बूत करता है।
  • हर जुमे को बेरी के पत्तों से सर धोना बर्स और पागलपन से महफ़ूज़ रखता है।
  • रौग़ने ज़ैतून और आबे कासनी नफ़्स को पाक करती है, बलग़म को दूर करती है और ‘ाब-बेदारी की तौफ़ीक़ होती है।
  • ज़ैतून का तेल बड़ी अच्छी ग़िज़ा है मुंह को ख़ुशबूदार बनाता है बलग़म को दूर करता है चेहरे को सफ़ाई और ताज़गी बख़्श्ता है, आसाब को तक़वीयत देता है, बीमारी और ददै को दूर करता है और ग़ुस्से की आग को बुझाता है।
  • खाने के बाद सीधे लेट जाओ और दाहिना पाँव बायें पाँव पर रख लो।
  • जो चाहता है कि दर्द मसाना (गुर्दा) न हो उसे चाहिये कि कभी पेशाब न रोके अगर चे सवारी पर हो।
  • जो चाहता है कि मेदा सही रहे वह खाने के दरमियान पानी न पिये बल्कि खाने के बाद पानी पिये। खाने के दरमियान पानी पीने से मेदा कमज़ोर हो जाता है।
  • जो चाहता है कि हाफ़िज़ा ज़्यादा हो उसे चाहिये कि सात दाना किशमिश सुबह के वक़्त खाये।
  • जो चाहता है कि कानों में दर्द न हो चाहिये कि सोते वक़्त कानों में रूई रख ले।
  • जो चाहताा है कि उसे जाड़ों में ज़ुकाम न हो उसे चाहिये कि हर रोज़ तीन लुक़मा ‘ाहद जिसमें मोम मिला हो खाये।
  • जो चाहता है कि गर्मियों में जु़काम से महफ़ूज़ रहे उसे चाहिये कि हर रोज़ एक खीरा खाये और धूप में बैठने से परहेज़ करे।
  • जो चाहता है कि तन्दरूस्त रहे और बदन हल्का और गोश्त (मोटापा) कम हो उसे चाहिये कि रात की ग़िज़ा कम खाये।
  • जो चाहता है कि नाफ़ दर्द न करे उसे चाहिये कि जब सर पर तेल लगाये तो नाफ़ पर भी तेल लगाये।
  • जो चाहता है कि गले में कव्वा न बढ़े उसे चाहिये कि मीठी चीज़ खाने के बाद सिरके से ग़रारा करे।
  • जो चाहता है कि जिगर की तकलीफ़ से महफ़ूज़ रहे वह ‘ाहद का मुस्तक़िल इस्तेमाल करे।
  • जो तूले (लंबी) उम्र चाहता है उसको लाज़िम है कि सुब्ह के वक़्त कुछ खाया करे।
  • जो चाहता है कि क़ब्ज़ न हो वह नहार मुँह एक प्याली गरम पानी में एक चम्चा ‘ाहद घोल कर पिये।
  • जो चाहता है कि उसके बदन में गैस न बरे उसे चाहिये कि हफ़्ते में एक बार लहसुन खाये।
  • जो चाहता है कि उसके दाँत ख़राब न हों उसे चाहिये कि कोई मीठी चीज न खाये। मगर यह कि उसके बाद एक लुक़्मा रोटी खा ले।
  • जो चाहता है कि ग़िज़ा ख़ूब हज़म हो उसे चाहिये कि सोने से पहले दाहनी करवट लेटे फिर बायीं करवट लेटे।
  • जो चाहता है कि बीमार न हो वह खाने और पीने में एतेदाल से काम ले।
  • दाँतों की हिफ़ाज़त के लिये ठण्डी और गर्म चीज़ें खाने से परहेज़ करना चाहिये और बहुत ज़्यादा गर्म और सख़्त चीज़ों को दाँतों से नहीं तोड़ना चाहिये।
  • मसूर की दाल दिल को नर्म करती है।
  • गेहूँ की रोटी पर जौ की रोटी को ऐसी फ़ज़ीलत है जैसी हम अहलेबैत को तमाम आदमियों पर और हर पैग़म्बर ने दुआ की जौ की रोटी खाने वालों के लिये।
  • अपने बीमारों को चुक़न्दर के पत्ते खिलाओ कि उनमें शिफ़ा ही शिफ़ा है।
  • ‘ाहद सत्तर क़िस्म की बीमारियों को दूर करता है। सफ़रा को घटाता है, प्यास की ज़्यादती को दूर करता है और मेदे को साफ़ करता है।
  • अगर लोग कम खायें तो बदन सेहतमन्द रहेंगे।
  • गाजर कोलिज (आतों के दर्द) और बवासीर से महफ़ूज़ रखती है और मरदाना क़ुव्वत में इज़ाफ़़ा करती है।

Thursday, July 28, 2011

Tibb-e-masoomeen, Shahad Namak Chawal Pani Pyaz Kharbuza Hindi

इरशादाते पैग़म्बरे इस्लाम अलैहिस्सलाम

बीमारी तीन तरह की है और दवा भी तीन तरह की है, बीमारी ख़ून, सफ़रा और बलग़म से है, दवाये ख़ून हजामत, दवाये बलग़म नहाना और दवाये सफ़रा चलना है।
परवरदिगार ने कोई मर्ज़ नहीं पैदा किया मगर यह कि उसकी दवा भी पैदा की, सिवाये मौत के।
ग़िज़ा उस वक्त खाओ जब ख्वाहिश हो और उस वक्त ग़िज़ा से हाथ रोक लो जब खाने की ख्वाहिश बाक़ी हो।
ख़ुदा के नज़दीक बेहतरीन और महबूब खाना वह है जिसकी तरफ़ ज़्यादा हाथ बढ़ें। (खाना साथ में खायें)
एक उँगली से खाना खाना शैतान का तरीक़ा है, दो उँगलियों से खाना खाना मुताकब्बेरीन (घमण्डियों) का तरीक़ा है और तीन उँगलियों से खाना खाना पैग़म्बरों का तरीक़ा है।
खाने को ठण्डा करके खाओ कि गरम खाने में बरकत नहीं है।
ग़िज़ा खाने के वक़्त जूतों को उतार दो कि तुम्हारे पैरों को राहत होगी और यह तरीक़ा पसन्दीदा है।
नौकरों के साथ खाना खाओ के यह तरीक़ा तवाज़ों और इन्केसारी का है, जो नौकरों के साथ खाना खाता है बहिश्त उसकी मुश्ताक़ होती है।
बाज़ार में खाना खाना पस्त और नापसन्दीदा तरीक़ा है।
मोमिन वह खाना खाता है जो घर के अफ़राद को पसन्द होता है और मुनाफ़िक़ घर के अफ़राद को वह खाना किखलाता है, जो ख़ुद पसन्द करता है।
दस्तरख्वान पर मुख्तलिफ़ ग़िज़ाओं को एक साथ न खाओ।
पाँच चीज़ें ज़िन्दगी भर मेरी सीरत में रहेंगी। ख़ाक पर बैठकर खाना खाना, खच्चर की सवारी करना, बकरी दुहना, अदना कपड़े पहनना, बच्चों को सलाम करना ताकि क़ौम की सीरत बन जाये।
जब खाना दस्तरख्वान पर खाओ तो खाना अपने सामने के हिस्से से लो, खाने के दरमियान और ऊपरी हिस्से में बरकत होती है और तुममें से कोई भी खाना खाने से हाथ न रोके और दस्तरख्वान से न उठे यहाँ तक कि सभी अफ़राद सेर होकर उठ जायें क्योंकि दूसरों से पहले खाने से हाथ रोकना और खड़े हो जाना उनकी शरमिन्दगी का सबब होगा।
बरकत तीन चीज़ों में हैः एक साथ खाने में, (वक्ते) सहर खाने में और जिस खाने में तरी हो।
जो बरतन में बची हुई ग़िज़ा को खाता है तो बरतन उसके लिये अस्तग़फ़ार करता है।
जो भी दस्तरख्वान पर गिरे हुए टुकड़ों को खाता है, जब तक ज़िन्दा रहता है रोज़ी में इज़ाफ़ा होता है और बच्चे हराम से महफ़ूज़ रहते हैं।
शिकम पुर होकर खाना खाने के नुक़सान
ज़्यादा ग़िज़ा न खाओ कि क़ल्ब सख़्त करता है, आज़ा व जवारेह में सुस्ती पैदा करता है और वाज़ व अहकामे इलाही को सुनने से दिल को बेबहरा करता है।
जो शख़्स ग़िज़ा कम खाये जिस्म उसका सही और क़ल्ब उसका नूरानी होगा और जो शख़्स ग़िज़ा बहुत खाये जिस्म उसका बीमार और दिल में उसके सख्ती पैदा होती है।
एक बार दिन में और एक बार रात में ग़िज़ा खाओ।
ग़िज़ा खाने के बाद अपने दाँतों में खि़लाल करो और मुँह में पानी हिलाकर कुल्ली करो, क्योंकि यह अमल सामने के दाँतों और अक्ल की सेहत और सलामती का सबब है।
अपने दाँतों में खि़लाल करो कि पाकीज़गी और सफ़ाई का सबब है और सफ़ाई ईमान से है और ईमान अपने साहब की बहिश्त तक हमराही करता है।
पानीः
पानी खड़े होकर रात में नहीं पीना चाहिये।
पानी को घूँट घूँट करके पियो एक साथ न पियो।
जो पानी पीने में तीन बार साँस लेता है ईमान में रहेगा।
बेहतरीन सदक़ा और एहसान पानी देना है।
बेहतरीन पीने की शय दुनिया और आखि़रत में पानी है।
रोटी
तुम्हारी बेहतरीन ग़िज़ा रोटी और बेहतरीन फल अंगूर है।
रोटी को चाक़ू से न काटो और रोटी की क़द्र व क़ीमत समझो कि ख़ुदा ने उसका एहतेराम किया है।
नमकः
ग़िज़ा खाने से पहले अगर कोई तीन लुक़मा नमक से खाये तो सत्तर तरह की बीमारियां उससे दूर होंगी जिनमें से बाज़ यह हैं ः जुनून, जुज़ाम और बरस
जो हर खाना खाने से पहले और बाद में नमक खाता है तो ख़ुदावन्दा 73 तरह की बलाओं और अमराज़ को उससे दूर करता है।
ग़िज़ा को नमक से शुरू करो कि यह सत्तर अमराज़ की दवा है।
अगर लोग नमक की ख़ूबियों से वाक़िफ़ होते तो किसी दवा के मोहताज न होते।
गोश्त
गोश्त खाना बदन के गोश्त में इज़ाफ़ा करता है। जो चालीस दिन गोश्त न खाये उसका क़ल्ब ख़राब हो जाता है।
चालीस दिन (लगातार) गोश्त का खाना क़ल्ब में सख़्ती और तारीकी पैदा करता है। (गोश्त खाना सुन्नते पैग़म्बर स0 है इसलिये तर्क न करे लेकिन ज़ियादती नुक्सानदेह है एक दिन में दो बार गोश्त न खाओ।)
चावलः
खाने में चावल की मिसाल ऐसी है जैसे क़ौम और क़बीले में सय्यद व आक़ा की।
दूधः
अपनी हामिला औरतों को दूध पिलाओ ताकि तुम्हारे बच्चों की अक़्ल ज़्यादा हो।
दूध पीने के बाद कुल्ली करो कि दूध में चर्बी होती है जो मुँह में बाक़ी रह जाती है।
दूध पीना ईमान को ख़ालिस करता है।
मिसवाकः
या अली अ0 तुमको चाहिये कि मिसवाक हर वुज़ू के लिये करो।
मिसवाक आँखों को रोशन करती है, बालों को उगाती है और दूर करती है आँखों से पानी निकलने को।
मिसवाक का ज़्यादा करना इन्सान के लिये उसकी फसाहत को ज़्यादा करता है।
फलः
फलों को फस्ल के आग़ाज़ (शुरू) में और पकने पर खाओ कि बदन को सालिम और ग़म को दूर करते हैं। फ़सल ख़त्म होने पर न खाओ, कि बदन में बीमारी का सबब होते हैं।
जो फलों को अलग-अलग खाता है उसे नुक़सान नहीं पहुँचता।
फल के छिलके पर ज़हर होता है जब खाओ तो धो लिया करो।
ख़ुरमाः
बच्चे की विलादत के बाद माँ को सबसे पहले जो चीज़ खानी चाहिये वह मीठा ख़ुरमा है क्योंकि अगर इससे बेहतर कोई चीज़ होती तो परवरदिगार जनाबे मरियम को उसी से तआम कराता।
नाशते में ख़ुरमा खाओ कि बदन के कीड़ों को ख़त्म करता है।
जो  ख़ुरमा हासिल कर सकता है उसे चाहिये कि ख़ुरमे से अफ़तार करे।
ख़ुरमा अल्लाह से क़ुरबत का और शैतान से दूरी का बाएस है।
ख़रबूज़ा
ख़रबूज़े को फल की जगह खाओ और दाँतों से खाओ (छील कर नहीं) कि उसका पानी रहमत है, उसकी मिठास ईमान की मिठास है जो उसका एक टुकड़ा खाता है परवरदिगार उसे सत्तर हज़ार नेकी देता है और सत्तर हज़ार बुराईयों को दूर करता है।
ख़रबूज़ा बेहिश्ती फल है उसमें हज़ार बरकत, हज़ार रहमत और हर दर्द की शिफ़ा है।
ख़रबूज़ा मुबारक और पाकीज़ा फल है जो मुँह को पाक करता है क़ल्ब को नूरानी करता है, दाँतों को सफ़ेद और ख़ुदा को ख़ुश करता है। उसकी ख़ुशबू अम्बर, उसका पानी कौसर से, उसका गूदा फ़िरदौस से, उसकी लज़्ज़त बेहिश्ती और उसका खाना इबादत है।
ख़रबूज़ा का खाना मुबारक हो कि उसमें दस ख़ुसूसियात हैं। ग़िज़ा और पीने की चीज़ है, दाँतों को पाक करता है, मसाना (गुर्दों) को साफ करता है, शिकम को धोता है, चेहरे की ताज़गी को बढ़ाता है, जिन्सी क़ुव्वत में इज़ाफ़ा करता है और चेहरे की खाल को पाक और नर्म करता है।
अगर हामिला औरत ख़रबूज़ा और पनीर खाये तो बच्चे का अख़लाक़ नेक होगा।
अनारः
अनार को दाना-दाना खाओ कि इस तरह बेहतर है।
अनार खाओ कि क़ल्ब को रौशन करता है और इन्सान को चालीस दिन तक शैतान के वसवसों से दूर करता है।
जो एक पूरा अनार खाता है परवरदिगार चालीस दिन उसके क़ल्ब को नूरानी करता है।
तुमको अनार चाहिये कि वह भूखे को सेर करता है पेट भरे के लिये हाज़िम है।
कद्दूः
जो शख्स कद्दू मसूर की दाल के साथ खाये उसका दिल ज़िक्रे ख़ुदा के वक्त रक़ीक़ (नर्म) हो जायेगा।
कद्दू खाओ कि ख़ुदा ने उससे नर्म कोई दरख्त पैदा किया होता तो जनाबे यूनुस अ0 के लिये वही उगाता।
कद्दू खाओ कि दिमाग़ और अक्ल को ज़्यादा करता है और क़ल्बे ग़मगीन को ख़ुशहाल करता है।
किशमिश:
दो चीज़ों को दोस्त रखों और एहतेराम करोः किशमिश और खुरमा।
बेहतरीन चीज़ जिससे रोज़ादार अफ़तार कर सकता है किशमिश व ख़ुरमा या कोई मीठी चीज़ है।
जितना मुमकिन हो किशमिश इसतेमाल करो कि सफ़रा को निकालती है, बलग़म को ख़त्म करती है, आसाब को क़ुव्वत देती है, बदन की कमज़ोरी को दूर करती है और क़ल्ब को हयात बख़्शती है।
किशमिश से आसाब में मज़बूती और नफ़्स में पाकीज़गी पैदा होती है।
अंगूरः
अंगूर खाओ कि ग़म व अन्दोह को दूर करता है।
मेरी उम्मत की बहार अंगूर और ख़रबूज़ा है।
अंजीरः
अंजीर की मुँह की बदबू को दूर करती है, हड्डियों को मज़बूत करती है, दर्द में फाएदेमन्द है।
जो चाहता है कि दिल नर्म हो तो अंजीर बराबर खाये।
रौग़ने बनफ़शाः
रौग़ने बनफ़शा को दूसरे तेलों के मुक़ाबले में वैसी ही बरतरी हासिल है जैसे इस्लाम को दूसरे दीनों (मज़हबों) के मुक़ाबले में।
इतरे बनफ़शाः
अपने को इतरे बनफ़शा से मोअत्तर करो कि यह गर्मियों में खुनकी और सरदियों में गर्मी का सबब होता है।
हिना (मेंहदी) ः हिना इस्लाम का खि़ज़ाब है, मोमिन के अमल में इज़ाफ़ा करता है, सर दर्द दूर करता है, और आँखों की रौनक़ में इज़ाफ़ा करता है।
परवरदिगार ने कोई दरख्त नहीं पैदा किया जिसे हिना से ज़्यादा दोस्त रखता हो।
लहसुनः
लहसुन खाओ कि सत्तर दर्दों की दवा है।
प्याज़ः
जब तुम किसी शहर में पहुँचो तो सबसे पहले वहाँ की प्याज़ खा लिया करो ताकि उस शहर की बीमारियाँ तुमसे दूर रहेंे।
शहदः
जो शख्स महीने में कम से कम एक बार शरबते शहद पिये और ख़ुदा से उस शिफ़ा का सवाल करे जिसका ज़िक्र क़ुरआन में है तो (ख़ुदा) उसको सत्तर बीमारियों से शिफ़ा देगा।
अगर कोई तुम्हें शरबते शहद पेश करे तो इन्कार न करो।
अगर कोई शहद खाता है तो हज़ार दवायें उसके पेट में दाखि़ल होती हैं और हज़ार तकलीफ़ें दूर होती है।।
जो चाहता है कि याद्दाश्त ज़्यादा हो उसे शहद खाना चाहिये।
शहद बेहतरीन पीने की शय है कि क़ल्ब को हयात देता है और सीने की सर्दी को निकालता है।
पाँच चीज़ें निसयान (भूल) को दूर करती हैं, हाफ़िज़े को ज़्यादा और बलग़म को दफ़ा करती हैं, मिसवाक करना, रोज़ा रखना, क़ुरआन पढ़ना, शहद खाना और कुन्दुर खाना।
शहद खाओ कि पाकीज़गी और शादाबी का सबब है।
इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम से मनक़ूल है कि किसी शख्स ने हज़रत रसूले ख़ुदा स0 से अज़ की कि मेरे भाई के पेट में दर्द है हुज़ूर ने फ़रमाया ‘‘थोड़ा शहद गरम पानी में मिला कर पिला दो’’।
रौग़ने ज़ैतून ः
रौग़ने ज़ैतून ग़ुस्से को कम करता है।
रौग़ने ज़ैतून चालीस दिन तक शैतान को क़रीब नहीं आने देता।

Friday, July 8, 2011

shiya (shia) aur islam (islaam) hindi

शिया और इस्लाम
क़ुरआने करीम इस्लाम के अलावा किसी अन्य धर्म को इस अर्थ मे मान्यता नही देता। जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए आलि इमरान की आयत न. 19 में वर्णन हुआ कि इन्ना अद्दीना इन्दा अल्लाहि अलइस्लामअनुवाद--अल्लाह के समक्ष केवल इस्लाम धर्म ही मान्य है।

इस्लाम का शाब्दिक अर्थ समर्पणहै। और क़ुरआन की भाषा में इसका अर्थ अल्लाह के आदेशों के सम्मुख समर्पितहोना है। यह इस्लाम शब्द का आम अर्थ है।

क़ुरआने करीम इस्लाम के अलावा किसी अन्य धर्म को इस अर्थ मे मान्यता नही देता। जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए आलि इमरान की आयत न. 19 में वर्णन हुआ कि इन्ना अद्दीना इन्दा अल्लाहि अलइस्लामअनुवाद--अल्लाह के समक्ष केवल इस्लाम धर्म ही मान्य है।
इस्लाम की दृष्टि में इस बात का महत्व है कि इस पवित्र आस्था में विश्वास रखते हुए नेक कार्य किये जाये। अर्थात केवल अपने आपको इस आस्था से सम्बन्धित कर देना ही पर्याप्त नही है।
सूरए बक़रा की आयत न. 62 में वर्णन हो रहा है कि इन्ना अललज़ीना आमनू व अल लज़ीना हादू व अन्नसारा व अस्साबिईना मन आमना बिल्लाहि व अलयौमिल आखिरि व अमिला सालिहन फ़लहुम अजरुहुम इन्दा रब्बिहिम वला खौफ़ुन अलैहिम वला हुम यहज़नूनाअनुवाद--- केवल दिखावे के लिए ईमान लाने वाले लोगो, यहूदी, ईसाइ व साबिईन [हज़रत यहिया को मान ने वाले] में से जो लोग भी अल्लाह और क़ियामत पर वास्तविक ईमान लायेंगे और नेक काम करेंगे उनको उनके रब (अल्लाह) की तरफ़ से सवाब (पुण्य) मिलेगा और उनको कोई दुखः दर्द व भय नही होगा।
परन्तु इन सब बातों के होते हुए भी वर्तमान समय में दीने मुहम्मद (स.) ही इस्लाम का मूल रूप है। अन्य आसमानी धर्म केवल दीने मुहम्मदी से पूर्व ही अपने समय में इस्लाम के रूप में थे, जो अल्लाह की इबादत ओर उसके सामने समर्पण की शिक्षा देते थे।
जैसे कि क़ुऱाने करीम के सूरए बक़रह की आयत न. 133 में वर्णन होता है कि अम कुन्तुम शुहदाआ इज़ हज़र याक़ूबा अलमौतु इज़ क़ाला लिबनीहि मा तअबुदूना मिन बअदी क़ालू नअबुदु इलाहका व इलाहा आबाइका इब्राहीमा व इस्माईला व इस्हाक़ा इलाहन वाहिदन व नहनु लहु मुस्लीमूना
अनुवाद---- क्या तुम उस समय उपस्थित थे जब याक़ूब की मृत्यु का समय आया ? और उन्होंने अपनी संतान से पूछा कि मेरे बाद किसकी इबादत करोगे ? तो उन्होने उत्तर दिया कि आपके और आपके पूर्वजो इब्राहीम, इस्माईल व इस्हाक़ के अल्लाह की जो एक है और हम उसी के सम्मुख समर्पण करने वाले हैं।)
इसी प्रकार इस्लामें मुहम्मदी (स.) पूर्व के समस्त आसमानी धर्मों की सत्यता को भी प्रमाणित करता है। जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए बक़रा की आयत न. 136 में वर्णन होता है कि
क़ूलू आमन्ना बिल्लाहि व मा उन्ज़िला इलैना व मा उन्ज़िला इला इब्राहीमा व इस्माईला व इस्हाक़ा व यअक़ूबा वल अस्बाति वमा ऊतिया मूसा व ईसा वमा ऊतिया अन्नबीय्यूना मिन रब्बिहिम, ला नुफ़र्रिक़ु बैना अहादिम मिनहुम व नहनु लहू मुस्लिमूना।
अनुवाद--- ऐ मुस्लमानों तुम उन से कहो कि हम अल्लाह पर और जो उसने हमारी ओर भेजा और जो इब्राहीम, इस्माईल, इस्हाक़, याक़ूब और याक़ूब की संतान की ओर भेजा गया ईमान ले आये हैं। और इसी प्रकार वह चीज़ जो मूसा व ईसा और अन्य नबीयों की ओर भेजी गयी इन सब पर भी ईमान ले आये हैं। हम नबीयों में भेद भाव नही करते और हम अल्लाह के सच्चे मुसलमान (अर्थात अल्लाह के सम्मुख समर्पण करने वाले) हैं।
इसी आधार वह लोग जिनको इस्लाम के वास्तविक मूल तत्वों के बारे में नही बताया गया या जिनको बताया गया परन्तु वह समझ नही सके, जिसके फल स्वरूप वह हक़ (इस्लाम) से दूर ही रहे इस्लामी दृष्टिकोण से क्षम्य हैं।
इस्लाम वह धर्म है जिसका वादा सभी आसमानी धर्मों ने किया
जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए हज की 78वी आयत में अल्लाह ने कहा है कि व जाहिदू फ़िल्लाहि हक़्क़ा जिहादिहि, हुवा इजतबाकुम वमा जआला अलैकुम फ़िद्दीनि मिन हरजिन, मिल्लता अबीकुम इब्राहीमा हुवा सम्माकुमुल मुस्लिमीना मिन क़ब्लु व फ़ी हाज़ा लियकूनुर्रसूलु शहीदन अलैकुम व तकूनू शुहदाअ अलन्नासि, फ़अक़िमुस्सलाता व आतुज़्ज़काता व आतसिमु बिल्लाहि, हुवा मौलाकुम फ़ा नेमल मौला व नेमन्नसीर।
अनुवाद--- और अल्लाह के बारे में इस तरह जिहाद करो जो जिहाद करने का हक़ है उसने तुम्हे चुना है और (तुम्हारे लिए) दीन में कोई सख्ती नही रखी है यही तुम्हारे दादा इब्राहीम का दीन है अल्लाह ने तुमको इस किताब में और इससे पहली (आसमानी) किताबों में मुसलमान के नाम से पुकारा है। ताकि रसूल तुम्हारे ऊपर गवाह रहे और और तुम लोगों के आमाल (अच्छे व बुरे काम) पर गवाह रहो अतः अब तुम नमाज़ स्थापरित करो और ज़कात दो और अल्लाह से सम्बन्धित हो जाओ वही तुम्हारा मौला(स्वामी) है और वही सबसे अच्छा मौला(स्वामी) और सहायक है।
इस्लाम अन्तिम धर्म के रूप

अर्थात इस्लाम अन्तिम आसमानी धर्म है जो हज़रत मुहम्मद स. के द्वारा समपूर्ण मानव जाती के लिए भेजा गया है। तथा इस्लाम का संविधान अनंतकाल तक अल्लाह पर ईमान, उसकी इबादत और उन समस्त चीज़ों को जो अल्लाह एक इंसान के जीवन में चाहता है दर्शाता रहेगा।
मानव जाति हज़रत मुहम्मद स. के पैगम्बर पद पर नियुक्ति के समय तक इतनी सक्षम व योग्य हो गया थी कि अल्लाह के पूर्ण दीन (इस्लाम) को ग्रहण कर सके और उसको अल्लाह के प्रतिनिधियों से समझ कर अनंतकाल तक अपना मार्ग दर्शक बनाये।
इस्लाम की शिक्षाऐं किसी विशेष स्थान या वर्ग विशेष के लिए नही हैं बल्कि इस्लाम क़ियामत (प्रलय) तक सम्पूर्ण मानव जाती के लिए मार्ग दर्शक है। क्योंकि इस्लाम ने मानव जीवन के समस्त संदर्भों पर ध्यान दिया है। अतः इस्लाम इतनी व्यापकता पाई जाती है कि मानव को समाजिक या व्यक्तिगत स्तर पर, भौतिक व आत्मिक विकास के लिए जिन चीज़ों की आवश्यक्ता होती हैं वह सब चीज़े इस में उपलब्ध है।
 इस्लाम की शिक्षाऐं
इस्लाम की शिक्षाओं को इन तीन भागो में विभाजित किया जा सकता हैक- एतिक़ादाती (आस्था से सम्बंधित)
ख- अखलाक़ियाती (सदाचार से सम्बंधित)
ग- फ़िक़्ही (धर्म निर्देशों से सम्बंधित)
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि नबी ने कहा है कि ज्ञान केवल तीन हैं आयाते मुहकिमह (आस्थिक), फ़रिज़ाए आदिलह (सदाचारिक) और सुन्नतुन क़ाइमह(फ़िक़्ह = धार्मिक निर्देश)
[उसूले काफ़ी 1/32]
एतिक़ादात” (धार्मिक आस्थाऐं) धर्म के मूल भूत तत्वों और अन्य शिक्षाओं का आधार हैं। इस्लाम धर्म की आस्थाऐं भी अन्य आसमानी धर्मों की तरह तौहीद नबूवत व मआद हैं।
क- तौहीद अर्थात अद्वैतवाद या एक इश्वरवादिता में विश्वास
ख- नबूवत अर्थात अल्लाह द्वारा भेजे गये नबीयों(प्रतिनिधियों) पर विश्वास
ग- मआद अर्थात इस संसार के जीवन की समाप्ति के बाद परलोकिय जीवन पर विशवास।
क- तौहीद (अद्वैतवाद या एक इश्वरवाद)
यह धर्म की आधारिक शिक्षा है यह अल्लाह के एक होने पर ईमान के बाद अल्लाह की पूर्ण रूप से इबादत के साथ पूरी होती है। इस्लाम ने मानव की उतपत्ति का मुख्य उद्देश केवल इबादत को ही माना है।
जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए ज़ारियात की आयत न. 56 में वर्णन हुआ कि मा ख़लक़्तुल जिन्ना वल इंसा इल्ला लियअबुदूना।
अनुवाद -- मैंने जिन्नों और इंसानों को केवल इबादत के लिए पैदा किया है। अर्थात मानव की उतपत्ति का उद्देश्य केवल इबादत है।
इस्लाम केवल उतपत्ति में ही अद्वैतवाद[1] का ही समर्थक नही है बल्कि रबूबियत तकवीनी[2] और रबूबियत तशरीई[3] मे भी अद्वैतवाद का समर्थक है।
अल्लाह की रबूबियते तशरीई के काऱण नबूवत की आवश्यक्ता पड़ती है क्योंकि संचालन का कार्य आदेशों व निर्देशों के बिना नही हो सकता और इन आदेशों व निर्देशो को इंसानों तक पहुँचाने के लिए प्रतिनिधि की आवश्यक्ता है। इस्लाम में इन्ही प्रतिनिधियों को नबी (पैगम्बर) कहा जाता है।
ख- नबूवत
अर्थात उन नबियों के अस्तित्व पर विश्वास रखना जो वहीव इलहाम के द्वारा इंसानों के लिए अल्लाह से संदेश पाते हैं। यहाँ पर वहीसे तात्पर्य वह संदेश है जो विशेष शब्दों के रूप में नबियों की ज़बान व दिल पर जारी (विद्यमान) होता है।
परन्तु नबियों पर वहीइलहामशब्दों के बिना भी हुआ है। इस्लामी विधान में इस प्रकार के संदेशों (बिना शब्दों के प्राप्त होने वाले संदेशों ) को हदीसे क़ुदसी कहा जाता है।
हदीसे क़ुदसी अल्लाह का एक ऐसा संदेश है जो अल्लाह के शब्दों में प्राप्त न हो कर मानव को नबी के शब्दों में प्राप्त हुआ है। यह संदेश क़ुरान के विपरीत है क्योंकि क़ुरआन के शब्द व आश्य दोनों ही अल्लाह की ओर से है।

प्रत्येक धर्म में वहीएक आधारिक तत्व है। और वह धर्म जिसके नबी पर की गयी वहीबाद की उलट फेर से सुरक्षित रही वह धर्म इस्लामहै। तथा अल्लाह ने इस सम्बन्ध में प्रत्य़क्ष रूप से वादा किया है कि वह क़ुरआन के संदेश को सुरक्षित रखेगा। जैसे कि क़ुराने करीम के सूरए हिज्र की आयत न. 9 में वर्णन हुआ है कि
 इन्ना नहनु नज़्ज़लना अज़्ज़िक्रा व इन्ना लहु लहाफ़िज़ून
 अनुवाद-- हमने ही इस क़ुरान को नाज़िल किया है (आसमान से भेजा है) और हम ही इसकी रक्षा करने वाले हैं।
इतिहास भी इस बात का साक्षी है कि क़ुरआन में कोई फेर बदल नही हुई है। और इसी प्रकार हदीसें भी इस विषय पर प्रकाश डालती हैं।

वर्णन योग्य बात यह है कि इस्लाम भी अन्य आसमानी धर्मों की तरह(उन धर्मों को छोड़ कर जिनमें फेर बदल कर दी गयी है) नबीयों को मासूम मानता है। और वहीको इंसानों तक पहुँचाने के सम्बंध मे किसी भी प्रकार की त्रुटी का खण्डन करता है।
जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए नज्म की आयत न. 3 और 4 में वर्णन होता है कि
व मा यनतिक़ु अनिल हवा इन हुवा इल्ला वहीयुन यूहा।
अनुवाद--वह (नबी) अपनी मर्ज़ी से कोई बात नही कहता वह जो भी कहता है वह वहीहोती है।
क़ुरआन एक आसमानी किताब है और इसमें वह सब चीज़े मौजूद हैं जिनका इस्लाम वर्णन करता है। इस किताब में उन चीज़ों का भी वर्णन है जो इस समय मौजूद हैं और उन चीज़ों का भी वर्णन है जो भविषय में पैदा होंगी। परन्तु मानव के कल्याण के लिए आवश्यक है उन समस्त चीज़ो के बारे में ज्ञान प्राप्त करे जो वर्तमान में मौजूद हैं या जो भविषय में पैदा होंगी।
 क़ुरआन जिन चीज़ों का वर्णन करता है उनके सम्बंध में कभी एक शिक्षक के रूप मे शिक्षा देता है और जो मानव नही जानते उनको सिखाता है। जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए निसा की आयत न. 113 में वर्णन हुआ है कि-
व अनज़लल्लाहु अलैकल किताबा वल हिकमता व अल्लमका मा लम तकुन तअलम, व काना फ़ज़लुल्लाहि अलैका अज़ीमन।
अनुवाद--- अल्लाह ने आप पर किताब व हिकमत (बुद्धिमत्ता) को उतारा और आप जिन चीज़ों के बारे में नही जानते थे उन सब का ज्ञान प्रदान किया। और आप पर अल्लाह की बहुत बड़ी अनुकम्पा है।
और कभी एक सचेत करने वाले के रूप में मानव की प्रकृति में छिपी हुई चीज़ों को मानव के सम्मुख प्रस्तुत करता है, और उसको निश्चेतना से बाहर निकालता है। जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए अंबिया की आयत न. 10 मे वर्णन होता है कि--
लक़द अनज़लना इलैकुम किताबन फ़ीहि ज़िक्रु कुम, अफ़ला तअक़िलून।
अनुवाद-- हमने तुम्हारी ओर एक किताब भेजी जिसमें तुम्हारे लिए चेतना है, क्या तुम इतनी भी अक़्ल नही रखते।
मनुष्यों की आत्मा की शुद्धि व प्रशिक्षण भी नबियों की एक ज़िम्मेदारी है। और यह भी वहीसे ही सम्बंधित है। जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए अलबक़रा की आयत न. 151 में वर्णन हुआ है कि कमा अरसलना फ़ीकुम रसूलन मिनकुम यतलू अलैकुम आयातिना व युज़क्किकुम व युअल्लिमुकुमुल किताबा वल हिकमता व युअल्लिमुकुम मा लम तकुनू तअलमून।
अनुवाद--जिस तरह हमने तुम्हारे पास तुम्ही में से एक पैगम्बर भेजा जो तुम्हारे सामने हमारी आयतों को पढ़ता है, तुम्हारी आत्माओं को पवित्र करता है और तुमको किताब व हिकमत (बुद्धि मत्ता) की शिक्षा देता है और वह सब कुछ बताता है जो तुम नही जानते।
 शायद इंसानों के दिलों में संतोष पैदा करना भी आत्मा के प्रशिक्षण के अन्तर्गत ही आता है जैसे कि क़ुरआने करीम ने इस ओर संकेत भी किया है। क़ुरआने करीम के सूरए अलहूद की आयत न.120 में वर्णन होता है कि
 “व कुल्लन नक़ुस्सु अलैका मिन अम्बाइर्रुसुलि मा तुसब्बितु बिहि फ़ुआदका।
 अनुवाद-- और हम आप के (सामने) पराचीन रसूलों की घटनाओं का वर्णन कर रहे हैं ताकि तुम्हारे दिल में संतोष पैदा हो जाये।
 शिक्षा व सचेत करने के अन्तर्गत ज्ञान के तीनों क्षेत्रों अक़ाईद (आस्था) अख़लाक़ (सदाचार) फ़िक़्ह (धर्म निर्देश) आ जाते हैं। और मानव इन तीनो क्षेत्रों में ही अल्लाह की अनुकम्पा का इच्छुक है।
 अल्लाह स्वयं भी इंसान का आदर करता है और इसके आदर का आग्रह भी करता है। जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए अलइसरा की आयत न. 70 में वर्णन होता है किलक़द कर्रमना बनी आदमा व हमलनाहुम फ़िल बर्रि वल बहरि व रज़क़नाहुम मिनत्तय्यिबाति व फ़ज़्ज़लनाहुम अला कसीरिम मिम मन ख़लक़ना तफ़ज़ीलन।
 अनुवाद-- और हम ने मानव जाती को को आदर प्रदान किया और उनको पानी व पृथ्वी पर चलने के लिए सवारियाँ तथा पवित्र भोजन प्रदान किया और बहुतसे प्राणी वर्गों पर उनको वरीयता दी।
 यह सब उन गुणों के कारण है जो मानव की रचना में छिपे हुए हैं। और इन गुणों में सर्व श्रेष्ठ गुण यह है कि मानव में संसार की वास्तविकता को समझने और परखने की शक्ति पायी जाती है।
 जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए अलक़ की आयत न. 1-5 में वर्णन हुआ है कि इक़रा बिस्मि रब्बिका अल्लज़ी ख़लक़ * ख़लाक़ल इंसाना मिन अलक़ *इक़रा व रब्बुकल अकरम * अल्लज़ी अल्लमा बिल क़लम * अल्लमल इंसाना मा लम याअलम।
 अनुवाद-- उस अल्लाह का नाम ले कर पढ़ो जिसने पैदा किया। उसने इंसान को जमे हुए ख़ून से पैदा किया। पढ़ो और तुम्हारा पालने वाला (अल्लाह) बहुत करीम (दयालु) है। जिसने क़लम (लेखनी) के द्वारा शिक्षा दी। और इंसान को वह सब कुछ बता दिया जो वह नही जानता था।
 परन्तु यह सब होते हुए भी इंसान अल्लाह की सहायता का इच्छुक है। ताकि मूर्खता व घमंड की खाई में न गिर सके। अल्लाह ने इंसान की प्रधानता से सम्बंधित क़ुरआन की उपरोक्त वर्णित आयात का वर्णन करने फौरन बाद कहा कि
 “कल्ला इन्नल इंसाना लयतग़ा * अन राहु इसतग़ना *
 अनुवाद-- निःसन्देह इंसान सरकशी करता है। वह अपने बारे में यह विचार रखता है कि उसे किसी चीज़ की आवश्यक्ता नही है।
 बाद में वर्णित यह दोनों आयते इंसान की कमज़ोरी की ओर संकेत करती है। और क़ुरआने करीम की अन्य आयतें इंसान के सम्बंध में इस प्रकार वर्णन करती हैं।
 “ इन्नहु काना ज़लूमन जहूलान ” (सूरए अहज़ाब आयत न.72)
 अनुवाद--वह बहुत ज़ालिम व जाहिल था।
 “ इन्नल इंसाना लज़लूमुन कफ़्फ़ारुन”(सूरए अल इब्राहीम आयत न.34)
 अनुवाद--इंसान ज़ालिम व शुक्र न करने वाला है।
 “ काना अल इंसानु अजूलन” (सूरए अल असरा आयत न. 11)
 अनुवाद-- इंसान बहुत जल्दबाज़ था।
 “ व ख़ुलिक़ल इंसानु ज़ईफ़न” (सूरए अन्निसा आयत न.28)
 अनुवाद--इंसान को कमज़ोर पैदा किया गया है।
 “ इन्नल इंसाना ख़ुलिक़ा हलूअन” (सूरए अल मआरिज आयत न. 19)
 अनुवाद--निःसन्देह इंसान को लालची पैदा किया गया है।
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 [1] उतपत्ति में अद्वैतवाद अर्थात इस बात में आस्था होना कि इस संसार का रचियता एक है और वह रचियता ऐसा है जिसकी ज़ात मे किसी प्रकार का संमिश्रण नही है। ।
 [2] रबूबियत तकवीनी अर्थात इस बात मे आस्था होना कि अल्लाह ने इस संसार को उतपन्न करके सवतन्त्र नही छोड़ है बल्कि इस संसार की समस्त प्रक्रियाओं में अल्लाह का इरादा विद्यमान।
 [3] रबूबियते तशरीई अर्थात इस बात में आस्था होना कि अल्लाह ने इंसान को पूर्ण अधिकार प्रदान किया है, परन्तु उसकी जीवन शैली को क़ानून के द्वारा संचालित करता है। और यह केवल उसका ही अधिकार है कि वह मानव को पूर्ण रूप से संचालित करने के लिए आदेश व निर्देश जारी करे।